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3 Views· 14/08/23· Bhagwat Gita

Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 18 | Geeta Saar in Hindi | Chapter 18 | श्रीमद भगवत गीता सार


Abhishek Kumar
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सरल हिंदी अध्याय 18 सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता | EASY HINDI Adhyay 18 Shrimad Bhagavad Gita

महाभारत युद्ध आरम्भ होने के ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह श्रीमद्भगवदगीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में 18 अध्याय और 696 श्लोक हैं।

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 ( https://youtu.be/8DQT9Wy395k )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 1
प्रथम अध्याय का नाम अर्जुनविषादयोग है।

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 ( https://youtu.be/H_mbEaEzJTs )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 2
दूसरे अध्याय का नाम सांख्ययोग है।

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 3 ( https://youtu.be/5reg2l9auEY )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 3
इस प्रकार सांख्य की व्याख्या का उत्तर सुनकर कर्मयोग नामक तीसरे अध्याय में अर्जुन ने इस विषय में और गहरा उतरने के लिए स्पष्ट प्रश्न किया कि सांख्य

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 ( https://youtu.be/1ZA6qcwC9cI )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 4
चौथे अध्याय में, जिसका नाम ज्ञान-कर्म-संन्यास-योग है, यह बाताया गया है कि ज्ञान प्राप्त करके कर्म करते हुए भी कर्मसंन्यास का फल किस उपाय से प्राप्त किया जा सकता है।

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 5 ( https://youtu.be/XeJzkGkGp2I )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 5
पाँचवे अध्याय कर्मसंन्यास योग नामक में फिर वे ही युक्तियाँ और दृढ़ रूप में कहीं गई हैं।

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 6 ( https://youtu.be/dLEw62KF0EI )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 6
छठा अध्याय आत्मसंयम योग है जिसका विषय नाम से ही प्रकट है। जितने विषय हैं उन सबसे इंद्रियों का संयम-यही कर्म और ज्ञान का निचोड़ है। सुख में और दुख में मन की समान स्थिति, इसे ही योग कहते हैं।

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7 ( https://youtu.be/-9U9fUxo1RI )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 7
संज्ञा ज्ञानविज्ञान योग है। ये प्राचीन भारतीय दर्शन की दो परिभाषाएँ हैं। उनमें भी विज्ञान शब्द वैदिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण था।

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 8 ( https://youtu.be/ZSMNBneieug )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 8
संज्ञा अक्षर ब्रह्मयोग है। उपनिषदों में अक्षर विद्या का विस्तार हुआ। गीता में उस अक्षरविद्या का सार कह दिया गया है-अक्षर ब्रह्म परमं, अर्थात् परब्रह्म की संज्ञा अक्षर है।

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 9 ( https://youtu.be/czLBFIDYXHc )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 9
राजगुह्ययोग कहा गया है, अर्थात् यह अध्यात्म विद्या विद्याराज्ञी है और यह गुह्य ज्ञान सबमें श्रेष्ठ है।

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 10 ( https://youtu.be/Qz_IeH94lQ4 )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 10

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 ( https://youtu.be/R-9LuJ-nPNQ )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 11
नाम विश्वरूपदर्शन योग है। इसमें अर्जुन ने भगवान का विश्वरूप देखा।

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 12 ( https://youtu.be/n28F6DKjTa0 )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 12

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 13 ( https://youtu.be/yHAnPmG9kCw )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 13
में एक सीधा विषय क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का विचार है। यह शरीर क्षेत्र है, उसका जाननेवाला जीवात्मा क्षेत्रज्ञ है।

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 14 ( https://youtu.be/gEB7vJzr81U )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 14
का नाम गुणत्रय विभाग योग है। यह विषय समस्त वैदिक, दार्शनिक और पौराणिक तत्वचिंतन का निचोड़ है-सत्व, रज, तम नामक तीन गुण-त्रिको की अनेक व्याख्याएँ हैं।

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 15 ( https://youtu.be/Y8R4v4GjpL8 )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 15
का नाम पुरुषोत्तमयोग है। इसमें विश्व का अश्वत्थ के रूप में वर्णन किया गया है। यह अश्वत्थ रूपी संसार महान विस्तारवाला है।

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 16 ( https://youtu.be/i-zLD--BJ4U )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 16
में देवासुर संपत्ति का विभाग बताया गया है। आरंभ से ही ऋग्देव में सृष्टि की कल्पना दैवी और आसुरी शक्तियों के रूप में की गई है।

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 17 ( https://youtu.be/UpaXjEmnYrs )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 17
की संज्ञा श्रद्धात्रय विभाग योग है। इसका संबंध सत, रज और तम, इन तीन गुणों से ही है, अर्थात् जिसमें जिस गुण का प्रादुर्भाव होता है, उसकी श्रद्धा या जीवन की निष्ठा वैसी ही बन जाती है।

सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 18 ( https://youtu.be/oDi8sBsuTuc )
Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 18
की संज्ञा मोक्षसंन्यास योग है। इसमें गीता के समस्त उपदेशों का सार एवं उपसंहार है। यहाँ पुन: बलपूर्वक मानव जीवन के लिए तीन गुणों का महत्व कहा गया है।

गीता की गणना प्रस्थानत्रयी में की जाती है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र भी सम्मिलित हैं। अतएव भारतीय परम्परा के अनुसार गीता का स्थान वही है जो उपनिषद् और धर्मसूत्रों का है। उपनिषदों को गौ (गाय) और गीता को उसका दुग्ध कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या थी, उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। उपनिषदों की अनेक विद्याएँ गीता में हैं। जैसे, संसार के स्वरूप के संबंध में अश्वत्थ विद्या, अनादि अजन्मा ब्रह्म के विषय में अव्ययपुरुष विद्या, परा प्रकृति या जीव के विषय में अक्षरपुरुष विद्या और अपरा प्रकृति या भौतिक जगत के विषय में क्षरपुरुष विद्या। इस प्रकार वेदों के ब्रह्मवाद और उपनिषदों के अध्यात्म, इन दोनों की विशिष्ट सामग्री गीता में संनिविष्ट है। उसे ही पुष्पिका के शब्दों में ब्रह्मविद्या कहा गया है।

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